IGNOU Solved Assignment BSOC 134 for the year of 2022-23

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इस पोस्ट मे आपको इग्नू का Solved Assignment BSOC 134 वर्ष 2022-23 मिलेगा।

भाग – I – Solved Assignment BSOC 134

Solved Assignment BSOC 134 ए
Solved Assignment BSOC 134

प्रश्न 1. समाजशास्त्र में घटनाशास्त्र परिप्रेक्ष्यों की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर—घटना-क्रिया-विज्ञान सामाजिक घटनाओं के अध्ययन का एक विशिष्ट पालन शास्त्र है। इसे घटना- क्रिया-विज्ञान इसलिए कहा जाता है कि यह सामाजिक घटनाओं की व्याख्याकर्ता की क्रियाओं एवं दृष्टिकोण के संदर्भ में करता है। समाजशास्त्र का परम्परागत पद्धतिशास्त्र सामाजिक व्यवहार या क्रिया के ऐतिहासिक तथा प्रकार्यात्मक प्रकृति पर जोर देता है।

इसके विपरीत घटना- क्रिया – विज्ञान सामाजिक जीवन के अध्ययन में व्याख्यात्मक दृष्टिकोण को स्वीकारता है तथा इस तथ्य पर जोर देता है कि सामाजिक क्रिया को सामाजिककर्ता के विचारों एवं दृष्टिकोण के संदर्भ में ही विश्लेषित किया जाना चाहिए। मानव में स्वयं को तथा दूसरों के साथ अपने सबधों को जानने व समझने की एक आदिम इच्छा होती है। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए घटना-क्रिया-विज्ञान तीन प्रकार की घटनाओं को पहचानने एवं जानने का प्रयत्न करता है-

  • (अ) उस घटना का अर्थ जो लोग अपनी दुनिया, वस्तु, व्यक्ति आदि के बारे में जानने का प्रयत्न करते हैं।
  • ब) वे दृष्टिकोण या संदर्भ जिसके द्वारा लोग स्वयं तथा दूसरों को देखते हैं। Solved Assignment BSOC 134
  • (स) वे अभिप्राय जो मनुष्य के व्यवहार में अन्तर्निहित होते हैं। वास्तविकता तो यही है कि ये तीनों ही चीजें किसी भी सामाजिक या व्यावहारात्मक विज्ञान के लिए आधारशिला है। इसके संबंध में चिनाय एवं हीविट का कथन है कि कुछ लोगों का दावा है कि घटना- क्रिया-विज्ञान समाजशास्त्र का सारभूत भाग है।

घटना- क्रिया – विज्ञान को स्पष्टतः समझने के लिए प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की अवधारणा को समझना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि घटना – क्रिया – विज्ञान का दृष्टिकोण प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र का ही सुधरा हुआ विकल्प है। प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की आधारशिला आगस्ट काम्टे ने रखी थी, किन्तु उसका वास्तविक प्रयोग एवं विकास एमिल दुर्खीम ने किया था। Solved Assignment BSOC 134

दुर्खीम व्यक्ति को गौण मानते हैं तथा समाज को मुख्य । आपकी स्पष्ट घोषणा थी कि समाज ही वास्तविक देवता है। चूंकि समाज ही देवता है, अतः सर्वशक्तिमान है, इस कारण व्यक्ति की समस्त क्रियाएँ समाज द्वारा निर्धारित एवं निर्देशित होती है। आपका कथन था कि प्रत्येक सामाजिक घटना या क्रिया का वास्तविक कारक समाज है। व्यक्ति पूजा, आराधना या प्रार्थना जो कुछ भी करता है तो वह समाज की सामूहिक शक्ति के सम्मुख ही नतमस्तक हो रहा है। Solved Assignment BSOC 134

उदाहरणार्थ, अगर व्यक्ति आत्महत्या भी कर रहा है तो उसका कारण समाज की सामूहिक शक्ति है जो उस पर स्वयं को मार डालने के लिए दबाव डाल रही है। इस प्रकार प्रत्यक्षवादी दृष्टिकोण का सार यह है कि मनुष्य का व्यवहार ऐसी शक्तियों द्वारा निर्धारित एवं निर्देशित होता है, जिस पर मनुष्य का नियंत्रण नहीं होता है । इस प्रकार कह सकते हैं कि दुर्खीम की परिभाषिक शब्दावली मानवीय व्यवहार को सामाजिक तथ्यों द्वारा निर्धारित मानती है ।

घटना- क्रिया-विज्ञान प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की मान्यताओं को अस्वीकार करता है क्योंकि इसमें कर्ता, उसकी क्रिया एवं उसके दृष्टिकोण को कोई स्थान नहीं दिया गया। है। इससे यह मान लिया गया है कि मानव समाज अथवा समूह के निर्देशों को यन्त्रवत् मानने के लिए बाधा है

स्वयं की उसकी क्रियाओं एवं विचारों का पद्धतिशास्त्र में कोई महत्त्व नहीं है। जो कुछ भी है, समाज ही है, वास्तविक नियंता वही है ।
घटना- क्रिया – विज्ञान की यह मान्यता है कि कोई भी सामाजिक घटनाकर्ता या कर्ताओं द्वारा की गयी क्रिया या क्रियाओं का प्रतिफल होती है तथा वह क्रियाको द्वारा लगाये अर्थों के अनुसार ही होती है।

उदाहरणार्थ, हम विवाह विच्छेद की सामाजिक घटना को ले सकते हैं, यह तब तक घटित नहीं होती जब तक कि विवाह के दोनों पक्षकार अर्थात् पति एवं पत्नी विवाह – विच्छेद की क्रियायें न करें। पति एवं पत्नी द्वारा इस प्रकार की कोई क्रिया करना इस तथ्य पर आधारित है कि वे विवाह अथवा वैध ानिक जीवन का क्या अर्थ समझते हैं। Solved Assignment BSOC 134

यदि वे विवाह का अर्थ लगाते हैं कि विवाह प्रेम, अनुराग, त्याग, सुख-दुख, झगड़ा एवं सहयोग का मिलाजुला रुप है तो वे निश्चय ही इस प्रकार कोई क्रिया नहीं करेंगे जिससे विवाह विच्छेद की परिस्थितियों उत्पन्न हो। इसके विपरीत यदि विवाह का अर्थ व इससे भिन्न लगाते है तथा उसी के अनुसार क्रिया करते हैं तो विवाह विच्छेद को रोका नहीं जा सकता है। घटना क्रिया – विज्ञान की यही मान्यता है । Solved Assignment BSOC 134

इस प्रकार घटना- क्रिया – विज्ञान के दृष्टिकोण से प्राकृतिक विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान की अध्ययन वस्तु में एक आधारभूत भेद है। प्राकृतिक विज्ञानों में किसी-न-किसी वस्तु का अध्ययन किया जाता है जिसमें कोई चेतना नहीं होती है। इस कारण उसके व्यवहार को बाह्य उत्तेजना के प्रति एक प्रतिक्रिया मात्र कहा जा सकता है। पदार्थ उसी रूप में क्रिया करने को विवश होता है जैसी की उसकी प्रकृति होती है, उदाहरणार्थ- पानी न मिलने पर पौधे का सूख जाना। यह सभी जगह घटित होगा क्योंकि पौधे की स्वयं कोई चेतना नहीं होती है।

इसके विपरीत मानव चेतनायुक्त प्राणी होता है, वह अपने संसार का अवलोकन करता है, अनुभव करता है एवं अर्थ लगाता है तथा उन अर्थों के सन्दर्भ में घटना का विश्लेषण करता है। उसके द्वारा समझे गये अर्थों को बाहरी व्यक्ति या समाज द्वारा उसके ऊपर लादा नहीं जा सकता है तथा न ही उसे एक निश्चित तरीके से कोई करने के लिए विवश किया जा सकता है। व्यक्ति के द्वारा लगाये गये अर्थों का निर्माण एवं पुनर्निर्माण सामाजिक अन्तःक्रिया के दौरान होता है। Solved Assignment BSOC 134

प्रश्न 2. सिद्धांत के मुख्य तत्व क्या हैं।

उत्तर – सामाजिक शोध द्वारा प्राप्त तथ्यों को जब परस्पर सम्बन्धित किया जाता है तो एक सिद्धान्त का निर्माण होता है। समाजशास्त्र में सिद्धान्त शब्द का प्रयोग इसके सामान्य जीवन में व्यवहार के विपरीत अर्थ के रूप में नहीं किया जाता है। सिद्धान्त से अभिप्राय तथ्यों के क्रमबद्ध अवधारणात्मक संरचना से है। सामाजिक सिद्धांत को परस्पर जुड़े विचारों की एक व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया गया है, जो सामाजिक विश्व के संदर्भ में ज्ञान को संकुचित और व्यवस्थित करता है। Solved Assignment BSOC 134

आमतौर पर सिद्धांत परिकल्पना के साथ भ्रमित होता रहता है और जब तक सिद्धांत सिद्ध न हो जाए, तब तक परिकल्पनाएं बनी रहती हैं। जब सबूत प्रमाण बन जाते हैं, तो सिद्धांत तथ्य बन जाता है। तथ्यों को निश्चित मान लिया जाता है, बिना किसी सवाल-जवाब के और उनका अर्थ स्वयं व्यक्त होता है। सिद्धांत तथ्यों के मध्य संबंधों को या सार्थक तरीके से तथ्यों को व्यवस्थित करने से होता है। Solved Assignment BSOC 134

सिद्धांत तथ्यों और आदेशों को अर्थ देने का काम करता है। जब तथ्यों को संकलित किया जाता है और एक संबंध विशेष के रूप में सहायता करते हैं। एक सिद्धांत में तथ्यों का तार्किक रूप से मूल्यांकन किया जा सकता है और एक सिद्धांत में उल्लिखित व्यक्तियों के अतिरिक्त अन्य संबंधों का भी अनुमान लगाया जा सकता है। Solved Assignment BSOC 134

सिद्धांत के निर्माण के बुनियादी तत्वों में शामिल हैं-

  1. अवधारणाएं, 2. चर तथा 3. कथन और प्रारूप |

1. अवधारणाएं – जब भी सिद्धांत के संबंध में चर्चा होती है तो ऐसे शब्द भंडार का प्रयोग आवश्यक हैं, जो प्रायः विषय विशेष में विशिष्टतः काम में आता है और उसमें वे शब्द- समूह होते हैं, जिन्हें अवधारणा कहा जाता है। अवधारणाएं सिद्धांत का मूल तत्व हैं और परिभाषा की प्रक्रिया द्वारा उन्हें विकसित किया जाता है। सिद्धांत का काम मूलतः अवधारणाओं को तार्किक रूप में एक-दूसरे से जोड़ना है। Solved Assignment BSOC 134

उदाहरण के लिए, जब सामाजिक विज्ञानी द्वारा संस्कृति शब्द का लिखित निबंध या मौखिक भाषण में प्रयोग किया जाता है तो समाजशास्त्र या नृशास्त्र को जानने वाले किसी भी व्यक्ति को आमतौर पर इसका अर्थ समझ में आ जाता है। सामान्य रूप से प्रत्येक अवधारणा के साथ उसका मानकीकृत वर्णन होता है, जिसे उसकी परिभाषा कहते हैं। Solved Assignment BSOC 134

अवधारणाएं अमूर्त होती हैं और उनका अमूर्तकरण अव्यवस्थित ढंग से न होकर अध्ययनाधीन तथ्य में दिखने वाली गोचर विशेषताओं में से मेहनत के बाद चुने गए संरचनात्मक गुणों का अभिलेखन करने के बाद होता है। हालांकि ऐसा चयन सांख्यिकी के आधार पर हो सकता है, लेकिन अंततः सिर्फ सहजानुभूति से या निगमनात्मक रूप से ही अवधारणा का निर्माण किया जाता है। Solved Assignment BSOC 134

2. चर – वैज्ञानिक सिद्धांत की अवधारणा को संसार के परिवर्तनशील लक्षणों को निरूपित करना चाहिए । घटनाओं को जानने के लिए यह जरूरी होता है कि हम इस बात की कल्पना करें कि एक परिघटना के परिवर्ती घटक घटना के परिवर्ती घटक से कैसे संबंधित हैं। भौतिक विज्ञान में चर उस वस्तु की विशेषता होती है, जो भौतिक रूप से परिकल्पित चर होते हैं।

सामाजिक विज्ञानों में यह उन लक्षणों को प्रदर्शित करता है, जो प्रत्येक वस्तु के लिए निर्धारित होती हैं, परंतु जो अलग नमूनों और अन्य समुच्चय समूहों में विभिन्न स्तरों, मात्रा अथवा तीव्रता पर देखी जाती हैं। चर एक आयु, वर्ग आदि जैसे सामाजिक निर्माण इस प्रकार से मापता है, जो इसे संख्यात्मक मूल्यांकन के लिए जिम्मेदार बनाता है। एक चर की प्रमुख विशेषता यह होती है कि यह जनसंख्या के भीतर भिन्नता को दर्शाने में सक्षम होती है तथा सतत नहीं होती है।

3. कथन और प्रारूप (Statement and Formats)- एक सिद्धांत की अवधारणाओं को एक- दूसरे सिद्धांत से जुड़ा होना जरूरी है तथा अवधारणाओं के मध्य यह संबंध बयान और कथन होता है। ये कथन उस तरीके को बताते हैं, जिसमें अवधारणाओं द्वारा प्रदर्शित एवं प्रतिनिधित्व की गई घटनाओं का परस्पर संबंध होता है, साथ ही वे इस बात की व्याख्या करते हैं कि घटनाओं को परस्पर कैसे और क्यों जोड़ा जाना चाहिए। जब इन सैद्धांतिक बयानों को एक साथ समाहित किया जाता है तो वे सैद्धांतिक स्वरूपों का निर्माण करते हैं।

भाग II - Solved Assignment BSOC 134
भाग II – Solved Assignment BSOC 134

भाग II – Solved Assignment BSOC 134

प्रश्न 3. आदर्श प्ररूप के महत्त्व की व्याख्या कीजिए ।


उत्तर- आदर्श प्रकार एक सैद्धांतिक निर्माण है, जिसका उपयोग संगठनों, समुदायों या ऐतिहासिक रूप से तुलना करने के लिए किया जाता है। आदर्श प्रकार की अवधारणा मैक्स वेबर द्वारा विकसित की गई थी। यह उनके ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन के लिए एक विश्लेषणात्मक उपकरण है। आदर्श प्रकार नौकरशाही जैसी किसी घटना के वास्तविक या अनुभवजन्य रूप से देखने योग्य संस्करणों के बजाय ‘तार्किक’ होते हैं। आदर्श प्रकारों का अभिप्राय यह नहीं है कि निर्माण किसी भी तरह से सही या अनुकरणीय है। Solved Assignment BSOC 134

वेबर ने आदर्श प्रकार का इस्तेमाल एक विशिष्ट अर्थ में किया। उनके अनुसार, ‘आदर्श प्रकार एक मॉडल की भांति, दिमागी तौर पर बनाई ऐसी विधि है, जिसके आधार पर वास्तविक स्थिति या घटना को जांचा जा सकता है और उसका क्रमबद्ध तरीके से चित्रण किया जा सकता है। वेबर ने सामाजिक यथार्थ को समझने और परखने के लिए आदर्श प्रकार को विचार पद्धति के साधन के रूप में इस्तेमाल किया। Solved Assignment BSOC 134

आदर्श प्रकार का मूल्यों से कुछ संबंध नहीं है। शोध के साधन के रूप में आदर्श प्रकार का प्रयोग वर्गीकरण और तुलना के लिए किया जाता है। वेबर के अनुसार, आदर्श प्रकार की अवधारणा शोध कार्य में संभावित कारणों की खोज में हमारी सहायता करती है। यह यथार्थ का विवरण नहीं है, परंतु इसका लक्ष्य ऐसे विवरण की स्पष्ट अभिव्यक्ति देना है, जिन तथ्यों को आनुभविक शोध के लिए सतर्कता से और जांच-परखकर एकत्र किया गया है। इस दृष्टि से आदर्श प्रकार ऐसी अवधारणाएं या संरचनाएं हैं, जिनका किसी सामाजिक समस्या को समझने और विश्लेषित करने की विचार पद्धति में साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

आदर्श प्रकार व्यवहारिक समस्याओं के विश्लेषण के लिए तैयार किए जाते हैं। बहुत से शोधकर्ताओं को इनका पूरा ज्ञान नहीं होता, जिनका उन्हें अपने अध्यन में उपयोग करना है। इससे उनका शोध कार्य अस्पष्ट और अनिश्चित हो जाता है। वेबर का मानना है कि इतिहासवेत्ताओं के विवरण में जिस भाषा का प्रयोग होता है, उसमें सैकड़ों अस्पष्ट शब्द होते हैं। ये शब्द ही सही भाषा की खोज की अचेतन जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। Solved Assignment BSOC 134

सही अभिव्यक्ति क्या होगी, यह अनुभव तो किया जा सकता है, लेकिन उस पर स्पष्ट रूप से विचार नहीं हो पाता । आदर्श प्रकार पूर्णतः अवधारणात्मक विचार से नहीं बनते, इन्हें वास्तविक समस्याओं के आनुभविक अध्ययन से विकसित किया जाता है, संशोधित किया जाता है और अधिक स्पष्ट बनाया जाता है। इससे विश्लेषण की शुद्धता बढ़ जाती है। Solved Assignment BSOC 134

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि आदर्श प्रकार आनुभविक समस्याओं के विश्लेषण की शोध पद्धति के साधन हैं। साथ ही इनसे प्रयोग की गई अवधारणा की अस्पष्टता और भ्रम दूर होते हैं तथा विश्लेषण की शुद्धता बढ़ती है । Solved Assignment BSOC 134

प्रश्न 4. उदविकासीय विधि क्या है? कुछ चिंतकों का नाम बताइए जिसने इस विधि का प्रयोग किया हो ।

उत्तर-विकासवादी विधि के माध्यम से उन लोगों पर ध्यान दिया जाता है, जिन्होंने प्रत्येक चीज की उत्पत्ति की खोज में विकासवादी विधि का उपयोग किया। सामाजिक विकास की विधि का प्रयोग करने वाले पहले विद्वानों में हर्बर्ट स्पेन्सर, एक अंग्रेजी दार्शनिक, जीवविज्ञानी और मानवविज्ञानी थे। स्पेन्सर ने समाज में व्यापक स्तर पर बदलाव पर लिखने के लिए ऐतहासिक विधि का प्रयोग किया था । स्पेन्सर ने जनसंख्या के आकार में परिवर्तन के कारण समाज में होने वाले साधारण विषय में बदलाव के संबंध में लिखा । Solved Assignment BSOC 134

स्पेन्सर की भांति, फ्रांसीसी दार्शनिक एवं सामाजिक दूरदर्शी अगस्ट कॉम्टे ने भी ऐतिहासिक विधि का प्रयोग किया था। कॉम्टे समाज में होने रहे परिवर्तनों को जानने का प्रयास कर रहे थे। उन्होंने समाज के विकास पर एक विकासवादी दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया । ऐतिहासिक दृष्टिकोण का प्रयोग करते हुए उन्होंने मानव की उत्पत्ति संबंधी विचार को भी प्रदर्शित किया। Solved Assignment BSOC 134

इनके अलावा विकासवादी विधि का प्रयोग करने वाले लुईस हेनरी मॉर्गन एक अन्य प्रमुख मानवविज्ञानी थे। उन्होंने टोटमवाद, विवाह, परिवार आदि की उत्पत्ति पर काम किया । उद्विकासवादी के बीच में एक नाम जेम्स फ्रेजर का था, जिनका काम टोटमवाद की उत्पत्ति पर था। उनकी विधि ने बाचोफेनए, कोहलर और दुर्खीम जैसे विद्वानों को प्रभावित किया। Solved Assignment BSOC 134

इस प्रकार हम देखते हैं कि विकासवादी रुख रखने वाले विद्वानों का मानना था कि समस्त समाज उद्विकास के एक ही मार्ग पर चलते हुए विकसित होते हैं। कुछ समाज दूसरों की तुलना में विकास पूर्वतर चरण में थे। इस प्रकार समस्त समाजों का इतिहास विकासवादी दृष्टिकोण से देखा गया था। Solved Assignment BSOC 134

प्रश्न 5. तुलनात्मक विधियां, जिसे दुर्खीम और रेडक्लिफ ब्राउन ने प्रयोग किया, सविस्तार लिखिए ।

उत्तर – तुलनात्मक विधि को वैज्ञानिक अर्थ में ठीक प्रकार से इस्तेमाल करने वाले प्रथम समाजशास्त्री दुर्खीम थे। उनका मानना है कि तुलनात्मक विधि प्रदर्शित करने के लिए एक दी गई परिघटना दूसरी घटना का कारण होती है। हमें विषयों की तुलना करना चाहिए तथा तुलनात्मक विधि को नियोजित करना होगा । Solved Assignment BSOC 134

दुर्खीम ने तुलनात्मक विधि को उत्कृष्ट विधि के रूप में स्थापित करने के अपने प्रयास में तुलना के लिए आधार प्रस्तुत किया था – एक प्रदत्त प्रभाव का सदैव एक ही संगत कारण होता है। उदाहरणस्वरूप, आत्महत्या अनेक कारकों की वजह से होती है, परंतु प्रत्येक कारक सिर्फ एक विशेष तरह की आत्महत्या में परिणाम होता है। समाज के साथ अति समेकन के कारण परोपकारी आत्महत्या होती है, कम समेकन अहंकारी आत्महत्या का कारण बनता है। Solved Assignment BSOC 134

दुर्खीम का मानना था कि तुलनात्मक विधि के समस्त प्रकारों को सामाजिक तथ्यों के अध्ययन पर लागू नहीं किया गया था। उनका मानना है कि समझौते की और अंतर करने की विधि के लिए एक जैसे कारण जटिल होते हैं। दुर्खीम के अनुसार तुलना किए गए कारणों में एक बिन्दु द्वारा या तो सहमति होती है या असहमति। दुर्खीम मिल द्वारा तार्किक रूप में प्रस्तुत की गई इन विधियों के पक्ष में नहीं थे, परंतु वे सकारात्मक भिन्नता की विधि के पक्ष में थे। मिल ने सामाजिक विज्ञान के लिए सहवर्ती भिन्नता के महत्त्व को खारिज कर दिया तथा विचार व्यक्त किया कि सामाजिक वास्तविकता बहुवाद और एक बिंदु की ओर झुकाव वाले कारण के अनेक उदाहरण प्रदान करती है।

यद्यपि तुलना को व्यवस्थित बनाया जाना चाहिए तथा सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए सटीकता के साथ लागू किया जाना चाहिए । विचारों का वर्णन करना इसे प्रदर्शित करना नहीं होता है। भिन्न-भिन्न विविधताओं की तुलना करना जरूरी नहीं होता है, परंतु एक व्यापक पहुंच वाली और श्रृंखला को व्यवस्थित विविधताओं की तुलना करना जरूरी हैं, जिसमें व्यक्तिगत वस्तुएं परस्पर विविधताओं के साथ जुड़ती रहती हैं। Solved Assignment BSOC 134

जिस प्रकार से किसी श्रृंखला का निर्माण किया गया था, वह इस बात पर निर्भर करता है कि तुलना एक ही सामाजिक प्रकार के समाजों के मध्य या विभिन्न प्रकार के समाजों के बीच की गई थी। एक ही समाज के भीतर तुलना करना समुचित हो सकता है, यदि यह बिल्कुल जरूरी हो, जब यह उन तथ्यों की बात हो, जो व्यापक रूप से वितरित किए जाते हैं तथा जिस पर हमारे पास सांख्यिकीय जानकारी है, जो व्यापक और विविध है। Solved Assignment BSOC 134

एक ही प्रजाति के अनेक समाजों की तुलना सिर्फ उसी परिघटना पर लागू होती है, जो एक ही समय में पैदा होती है। समाज अपने संगठनों को पूरी तरह नहीं बनाता, बल्कि कुछ को यह पूर्ववर्ती समाजों में से प्राप्त करता है। ये संगठन समय के साथ बदलते रहते हैं। सबसे व्यापक ऐतिहासिक एवं क्रास सांस्कृतिक तुलना किए जाने के बाद ही सबसे कठिन सामाजिक परिघटना की व्याख्या की जा सकती है। हमें सर्वप्रथम घटना की क्रमिक उन्नति की धीरे-धीरे जांच करने के लिए परिघटना के सबसे प्राथमिक रूप को स्थापित करने की जरूरत होती है। इससे हमें घटना का मूल्यांकन और संश्लेषण दोनों ही प्राप्त हो जाएंगे।

दुर्खीम ने अपने लेख ‘द डिवीजन ऑफ लेबर’ में तुलनात्मक पद्धति की नींव रखी थी। उन्होंने समाजों में यांत्रिक से जैविक एकजुटता में बदलाव का अध्ययन करने के लिए तुलनात्मक पद्धति का इस्तेमाल किया। उन्होंने विभिन्न समाजों की कानूनी प्रणालियों की तुलना की तथा यह समझा कि वे दमन और क्षतिपूर्ति की बहाली के सिद्धांत के आधार पर कितने नियम और कानूनो से अलग थे। दुर्खीम ने इन कानूनों के बीच संबंध को एक समाज की एकजुटता के सूचकांक के रूप में लिया। Solved Assignment BSOC 134

दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘सूसाइड’ में शोध करने की प्रक्रिया को दर्शाने का प्रयास किया। वह ‘सूसाइड’ के लिए एक समाजशास्त्रीय स्पष्टीकरण प्रदान करके समाजशास्त्र की वैज्ञानिक स्थिति को दर्शाना चाहते थे। दुर्खीम ने आत्महत्या को एक सामाजिक तथ्य के रूप में परिभाषित किया, जिसकी अन्य सामाजिक तथ्यों के बारे में स्पष्टीकरण की जरूरत थी। प्रत्येक देश के अंदर दूसरे देशों की श्रेणियों के लिए किए गए तुलनात्मक आंकड़े यह दर्शाते हैं कि आत्महत्या की दर अपेक्षाकृत निरंतर, अपरिवर्तनशील, अचल, अटल और सतत बनी हुई थी, इसलिए यह एक सामाजिक तथ्य होना चाहिए कि आत्महत्या के लिए सामूहिक प्रवृत्ति मौजूद थी।

रेडक्लिफ ब्राउन का मानना है कि तुलनात्मक नृविज्ञान अथवा समाजशास्त्र का उद्देश्य मानव सामाजिक घटनाओं के सैद्धांतिक अध्ययन के रूप में सामाजिक जीवन की प्रजातियों की खोज करना है । तुलनात्मक विधि के प्रमुख कार्यों में से समानान्तर समानता वाली सामाजिक विशेषताओं को देखना है, जो वर्तमान अथवा अतीत में विभिन्न समाजों में प्रतिबिंबित होती हैं। Solved Assignment BSOC 134

रेडक्लिफ – ब्राउन के अनुसार ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी समुदाय को टोटमवाद के आधार पर होने वाले विरोधों में बांटा गया है। बाडा ( ईगलहॉक) और कौवे की भांति अधशों (मोयटीज) को विभाजित करने के लिए पक्षियों एवं जानवरों का इस्तेमाल किया जाता है तथा यह अनेक दूसरे समुदायों एवं समाजों में भी पाया जाता है। Solved Assignment BSOC 134

रेडक्लिफ ब्राउन ने ऑस्ट्रेलिया के विभिन्न भागों में बाडा और कौवे के संबंध में अनेक कहानियों का संग्रह किया था और उन सभी में दोनों पक्षियों को किसी-न-किसी प्रकार के संघर्ष में विरोधियों के रूप में प्रदर्शित किया है। तुलनात्मक अध्ययन से इस तथ्य का पता चलता है कि वाडा और कौवा के बारे में ऑस्ट्रेलियाई विचार सिर्फ व्यापक घटनाओं का केवल एक विशेष उदाहरण है। Solved Assignment BSOC 134

दूसरी ओर प्राकृतिक प्रजातियों को विरोधाभासों के जोड़े में रखा जाता है। ऐसा तभी संभव हो सकता है, जब वे परस्पर मिलते-जुलते रहते हैं। इस प्रकार बाडा और कौवा दो प्रमुख मांस खाने वाले पक्षी होने के कारण परस्पर मिलते-जुलते हैं। Solved Assignment BSOC 134

तुलनात्मक अध्ययन में अगला प्रयास उन विविध रूपों की खोज करना है, जो दोहरे विभाजन के अर्धांशों के बीच उत्पन्न विरोध को वास्तविक जीवन में उतारते हैं। अर्धाशों के बीच विरोध की अभिव्यक्ति अलग-अलग रूप धारण कर सकती है। एक वह संस्था है, जो संबंधों पर चुटकले बनाती है। Solved Assignment BSOC 134

यह संस्था विभिन्न समुदायों और समाजों में पायी जाती है । इस प्रकार रेडक्लिफ ब्राउन ने ऑस्ट्रेलिया में बाडा चील और कौवे के नाम पर अर्धांश के अस्तित्व से शुरुआत की और अन्य समाजों और समुदायों के बीच तुलना करके उन्होंने देखा कि यह किसी एक क्षेत्र के लिए विशेष या विशिष्ट नहीं था, परंतु मानव समाजों में यह एक व्यापक सामान्य प्रवृत्ति के रूप में अस्तित्व में है। इस प्रकार से वह एक विशेष समस्या के लिए विकल्प प्रस्तुत करते हैं, जिन्हें सामान्य समस्याओं के एक ऐतिहासिक विवरण के रूप में प्रयोग किया है। कुछ

भाग II - Solved Assignment BSOC 134
भाग II – Solved Assignment BSOC 134

भाग II – Solved Assignment BSOC 134

प्रश्न 6. नारीवादी अनुभववाद की चर्चा कीजिए ।

उत्तर – 1960 और 1970 के दशक के महिला मुक्ति आंदोलन से उभरकर नारीवादी विचारकों ने विचार व्यक्त किया कि महिलाओं के दृष्टिकोण से शोध करने की जरूरत थी। इसका उद्देश्य महिलाओं के शोध के लिए जगह बनाना तथा उन्हें जागरूक करना था। पश्चिमी देशों के विद्वानों ने अपने अध्ययन में महिलाओं को शामिल करना प्रारंभ कर दिया था। Solved Assignment BSOC 134

महिलाओं के अध्ययन के लिए एक जागरूक कोशिश भी की गई। पश्चिम में अनेक महिलाओं के अध्ययन विभागों में महिलाओं के अध्ययन, उनकी उपलब्धियों आदि को संस्थागत बनाया गया। इसके मूल्य समानता और पुरुषवाद के थे। उन्होंने बुलंद आवाज में कहा कि महिलाएं पुरुषों की भांति ही सक्षम थीं। Solved Assignment BSOC 134

नारीवादी शोधकर्ताओं ने शोध पद्धति के लैंगिकता के लिए इस प्रकार के दृष्टिकोण की आलोचना की। उन्होंने विचार व्यक्त किया कि यह मौजूदा पुरुषवादी श्रेणियों के बिन्दु से महिलाओं का अध्ययन करने का एक प्रयास था। इस प्रकार के शोधकर्ता प्रत्यक्षवादी पद्धति का इस्तेमाल करते हैं, यद्यपि वे शोध में पुरुषवादी पूर्वाग्रह के आलोचक थे । Solved Assignment BSOC 134

एक नारीवादी शोध पद्धति ने महिलाओं को अध्ययन की वस्तुओं के रूप में नहीं बनाया। उन्होंने शोध में महिलाओं को शामिल करने का विचार दिया । उन्होंने यह भी कहा कि महिलाओं का अध्ययन मौजूदा शोध के मानदंडों के अनुसार किया जाना चाहिए । Solved Assignment BSOC 134

प्रश्न 7. गुणात्मक अनुसंधान की विविध चरणों को सविस्तार लिखें।

उत्तर- गुणात्मक शोध के आठ क्षण निम्नलिखित हैं-

पारंपरिक चरण ( 1900 1950 ) ( The Traditional Phase [1900-1950]) – यह चरण 1900 के दशक से प्रारंभ होता है तथा द्वितीय विश्वयुद्ध तक चलता है। इस दौर के क्षेत्रीय अनुभव सटीक और वस्तुनिष्ठ रिपोर्ट लिखने के प्रयासों का उपनिवेशीकरण कर रहे थे । इतिहास ने अन्य को एक अजीब बाहरी व्यक्ति के रूप में दर्शाया, जो घृणा और प्रकोप के योग्य था, कोई ऐसा व्यक्ति है, जो पर्यवेक्षक की तुलना में समस्त विषयों में निम्नतर रूप में खड़ा हुआ है। Solved Assignment BSOC 134

1914-15 और 1917-18 में न्यू गिनी और ट्रोबिएंड द्वीप समूह में मालिनोवस्की (1967) के क्षेत्र के अनुभव समलैंगिकों और ‘असभ्य’ द्वीपवासियों के मध्य के वस्तुनिष्ठ और चुनिन्दा उदाहरण हैं। उनके व्यवहार से पूर्वाग्रह और भेदभावपूर्ण व्यवहार दिखाई देता था, इसके बावजूद भी शोधकर्ता अभी भी विज्ञान और निष्पक्षता के लिए प्रतिबद्ध हैं। Solved Assignment BSOC 134

आधुनिकतावादी या स्वर्णिम चरण ( 1950-1970 ) – यह चरण 1970 के दशक में विशिष्ट रूप से मौजूद था। इस चरण के चिह्न आज भी दिखाई देते हैं। इस दौर के शोधकर्ता, विशेष रूप से आधुनिक नृवंशविज्ञानी और समाजशास्त्री गुणात्मक शोध की कसौटी पर सशक्तता से निर्माण करने का प्रयास कर रहे थे, ताकि इसकी संरचना को वैध बनाया जा सके, जो ‘द डिस्कवरी ऑफ ग्राउंडेड थ्योरी’ जैसी पुस्तकों में बेहतर तरीके से दिखाई देता है। गुणात्मक अनुसंधान में परंपराओं के समुचित अनुप्रयोग द्वारा सामाजिक अपराध, अवमूल्यन, अनुरूपता आदि जैसे प्रमुख सामाजिक प्रक्रियाओं का विस्तार से अध्ययन किया गया।

अस्पष्ट शैली ( 1970-86 ) – इस दौर में गुणात्मक अनुसंधान परंपराओं, इसके मॉडलों, नियमों और तरीकों में वृद्धि देखी गई। इस दौर में प्रतीकात्मक अंतर्क्रियावाद, निर्माणवाद, प्रकृतिवादी जांच, प्रत्यक्षवाद और उत्तर प्रत्यक्षवाद, परिघटनावाद, नृजातीय पद्धति, आलोचनात्मक सिद्धांत, नव-मार्क्सवादी सिद्धांत, अर्धचालक, संरचनावाद, नारीवाद जैसे सिद्धांतों में ज्यादा वृद्धि हुई । व्यावहारिक गुणात्मक अनुसंधान एक नई जगह प्राप्त कर रहा था और यह नई शैक्षणिक पृष्ठभूमि में अत्यधिक चर्चित था । इस प्रकार की कार्यनीतियों में जमीनी सिद्धांत, केस अध्ययन, ऐतिहासिक, जीवनी, नृवंशविज्ञान, क्रियात्मक और नैदानिक अनुसंधान शामिल थे।

प्रतिनिधित्व का संकट ( 1980 अध्यार्थ ) – इस दौर में कामगार लोग जाति, वर्ग और लिंग के जातीय क्षेत्रों के संबंध में जागरूक थे। गुणात्मक अनुसंधानों ने वास्तविकता, तरीकों, प्रतिनिधित्व और तथ्यों के नए प्रतिमानों को निर्मित किया । वस्तुनिष्ठता, विश्वसनीयता तथा वैधता के पूर्व निर्धारित पारंपरिक विचार एक बार पुनः अस्थिर हो गए। इससे प्रतिनिधित्व का संकट और गहराया तथा इस संकट ने बाहर निकलने के लिए लेखन के एक नए रूप का निर्माण करने का सुझाव दिया। Solved Assignment BSOC 134

क्लो (1998) का तर्क था कि लेखन के नए रूप इस प्रकार के संकट को समाप्त कर सकते हैं। प्राय: यह माना जाता था कि लेखन के नए रूप इस प्रकार से लिखे गए थे, जिससे क्षेत्र के अनुभव कामगार के लेखन में प्रवाहित होते हैं, जो अंततः शोधकर्ता के पाठ में समा जाते हैं। अंततः इस तरह लेखन और क्षेत्र के काम के मध्य जरूरी अंतर समाप्त हो गया । यह प्रतिनिधित्व में एक संकट उत्पन्न करता है, जो को एक नया वातावरण प्रदान करता है। गुणात्मक शोध Solved Assignment BSOC 134

उत्तर आधुनिककाल अवधि : प्रयोगिक और नए नृवंशविज्ञान का चरण ( 1990-1995 ) ( The Post – Modern Period: A Phase of Experimental and New Ethnographies [1990-1995])

इस दौर में ‘अन्य’ के मुद्दों को संबोधित करने के लिए स्थापित विभिन्न नृजातीय लेखन के साथ नृवंशविज्ञान का निर्माण करने के लिए नए तरीकों का अनुभव किया गया था। जिन समूहों को प्रारंभ में शांत किया गया, वे ‘अन्य’ समूहों के लिए ज्ञान पद्धति प्रदान करने के लिए आगे बढ़े। इस चरण में सहभागी, क्रिया और प्रभाव का अनुसंधान में वर्चस्व रहा, जिसमें ‘एकाकी’ पर्यवेक्षक के लिए कोई स्थान नहीं था । Solved Assignment BSOC 134

उत्तर जांच ( 1995-2000 ) – इस दौर में ठोस प्रयास करने के लिए नए उत्साह और ओजस का समावेश हुआ। गुणात्मक लेख लिखने के नए और प्रायोगिक तरीके प्रस्तुत किए गए, जो मानविकी और सामाजिक विज्ञान के मध्य के भेद को समाप्त कर देते हैं। मनुष्यों के जीवित अनुभवों को दर्शाने के लिए नए तरीकों को साहित्यिक, काव्यात्मक, आत्मकथा, बहुस्तरीय – आवाज, संवादी, आलोचनात्क, दृश्य, प्रदर्शनकारी और सह-निर्मित प्रतिनिधित्व जैसे शब्दों के साथ जोड़ा गया था। Solved Assignment BSOC 134

अनुसंधानिक रूप से सज्ज वर्तमान (2000-2004 ) – उपर्युक्त वर्णित पत्रिकाओं ने शोध और गुणात्मक परंपरओं के नए तरीकों को उजागर किया। ये सुनिश्चित रूप से नए लचीलेपन, तनावों, चुनौतियों, खण्डों, छंटनी और द्वंद्वों के साथ प्रकट हुए थे। Solved Assignment BSOC 134

विखंडित भविष्य (2005 ) – इस चरण में विशेष रूप से हमें व्याख्यात्मक शोध अभ्यास में रत लोगों के मध्य अधिक अस्थिरता, अशान्ति और उथल-पुथल जैसी समस्याओं को झेलना पड़ता है। वे पूर्णत: लोकतंत्र, जाति, वर्ग, लैंगिकता, जातीयता और राज्य के साथ प्रमुख सतर्कता से जुड़े हुए हैं। इस अंतर्क्रियात्मक और सहभागिता को वैश्विक और नव-उदारवादी समाज द्वारा उत्पादित किया गया है, जो परिवर्तित अभ्यावेदन को पकड़ने के लिए आंकड़े संग्रह की नई तकनीकों की मांग करते हैं। Solved Assignment BSOC 134

प्रश्न 8. सामाजिक विज्ञान अनुसंधान में आईसीटी के प्रभाव की चर्चा कीजिए ।

उत्तर – सूचना और संचार प्रौद्योगिकी तथा सामाजिक अनुसंधान के मध्य गहरा रिश्ता कैसे बना । ऐसा दिखाई देता है कि सामाजिक अनुसंधान में अत्यधिक तादाद में इसके अनुप्रयोग होते हैं। सामाजिक अनुसंधान में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग बहुत सीमा तक ज्ञान संचय प्रक्रिया को सुगम बनाने की क्षमता के कारण होते हैं, जो जांच के एक मजबूत प्रणाली के लिए जरूरी है। आमतौर पर सामाजिक अनुसंधान में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के लिए आवेदन के प्रासंगिक क्षेत्रों को तीन प्रमुख क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है-

  • पूर्व – आंकड़े संग्रह के पूर्व और विश्लेषण में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ।
  • डेटा संग्रह और विश्लेषण में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग।
  • पोस्ट – आंकड़े संग्रह के बाद सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग।

प्रश्न 9. इतिहास के विभिन्न स्रोतों की चर्चा कीजिए।

उत्तर- इतिहास के स्रोतों में सरकारी रिकॉर्ड के माध्यम से, समाजों के लिखित खातों, जैसे- स्रोतों के माध्यम से इतिहास तक पहुंचा जा सकता है। इतिहास के अन्य स्रोतों में, कलाकृतियां, कपड़े, गहने, हथियार आदि को सम्मिलित किया जा सकता है। समाजों के बारे में जानकारी एकत्रित करने के लिए जिस प्रकार के स्रोतों का इस्तेमाल किया जाता है, वह समाजों की प्रकृति पर निर्भर करता है। Solved Assignment BSOC 134

आमतौर पर समाजों के दस्तावेज और सरकारी रिकॉर्ड आदि के लिखित खाते ऐसे संसाधन होते हैं, जो जटिल समाजों में ही उपलब्ध हो पाते हैं, सरल समाजों में उपलब्ध नहीं हो सकते। सरल समाजों में तकनीकी विकास का स्तर जटिल समाजों की अपेक्षा कम होता है, इसलिए उनका कोई लिखित रिकॉर्ड भी नहीं होता है। इस मामले में जो स्रोत उपलब्ध होते हैं, उनमें कलाकृतियां, हथियार, कपड़े अथवा मौखिक इतिहास आदि शामिल होंगे।

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